पांकी: पितृ पक्ष सोमवार से शुरू हो गए हैं। अपने पितरों के प्रति श्राद्ध करने से दीर्घायु के साथ ही सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्राद्ध कर्म अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या यानी छह अक्टूबर तक तिथि के अनुसार करने चाहिए। ज्योतिषाचार्य पूनम वार्ष्णेय ने बताया कि वंश की परंपरा, वंश के प्रति कर्तव्य और उपादान ही श्राद्ध कर्म है। अपने पितरों का स्मरण करना, उनकी परंपराओं का पालन करना और उन्हें सद्गति प्राप्त कराना ही श्रेष्ठ धर्म है। पांच महायज्ञ में श्राद्ध कर्म को विशेष महत्व दिया गया है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध को शास्त्रों में पितृ यज्ञ कहा गया है।
ज्योतिष् के अनुसार गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृगण तिथि आने पर वायु रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वह अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। जब उनके पुत्र या कोई सगे संबंधी श्राद्ध कर्म करते हैं तो वे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। पितरों की प्रसन्नता से दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य सुख, स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है जो ऐसा नहीं करते हैं पितृ उनको श्राप देकर लौट जाते हैं।
तर्पण की विधि
पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से तात्पर्य उन्हें जल देना है। सभी तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने हाथ में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। अपने पितरों का नाम लेते हुए आप कहें कृपया यहां आकर मेरे दिए जल को आप ग्रहण करें। जल पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार अंजलि से गिराएं।
पितरों को यह दें भोजन
श्राद्ध में गाय का दूध और उन से बनी हुई वस्तुएं जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, आम, अनार, खीर नारियल, अंगूर, चिरौंजी, मिठाई, मटर और सरसों का या तिल का तेल प्रयोग करना चाहिए। आचार्य को भोजन कराने से पूर्व गाय, कुत्ते, चींटी और देवताओं के नाम की पूड़ी निकालनी चाहिए। कौवा को पितर के रूप में माना जाता है। कौवे का काला रंग राहु-केतु का प्रतीक है। राहु-केतु के कारण ही पितृ दोष लगता है। अत: पितृ पक्ष में कौवे को भोजन कराने से पितरों को शक्ति मिलती है।
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