बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति अस्थिरता और शक्ति संघर्ष का परिचायक है। एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बढ़ता तनाव विपक्षी महागठबंधन के लिए अवसर बन गया है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी और लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान की नाराजगी ने एनडीए की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
एनडीए का संकट
नीतीश कुमार की 122 सीटों की मांग और भाजपा के समन्वय में हो रही दिक्कतें एनडीए की चुनौतियों को बढ़ा रही हैं। मांझी के इस्तीफे की अटकलों और चिराग पासवान की बढ़ी हुई सीटों की मांग ने हालात को और भी गंभीर बना दिया है। इन आंतरिक खींचतान के बीच, एनडीए के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
तेजस्वी यादव की रणनीति
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए तैयार हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव की हार से सबक लेते हुए उन्होंने महागठबंधन में कांग्रेस को कम सीटें देकर अपनी स्थिति मजबूत की है। जातीय जनगणना और सामाजिक समीकरणों पर केंद्रित उनकी रणनीति, विशेष रूप से दलित और पिछड़े वर्गों पर ध्यान देना, उनकी राजनीतिक पकड़ को मजबूत बना सकती है। चिराग पासवान जैसे प्रभावशाली नेताओं से संवाद बढ़ाकर वे एनडीए के संकट का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
आगामी चुनाव का प्रभाव
एनडीए की आंतरिक अस्थिरता और तेजस्वी यादव की कुशल रणनीति ने बिहार की राजनीति को रोचक बना दिया है। जहां भाजपा और नीतीश कुमार के सामने अपनी एकता बनाए रखने की चुनौती है, वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह अवसर साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
बिहार की राजनीति सत्ता और समीकरणों की जटिल लड़ाई में उलझी हुई है। वर्तमान परिस्थितियों में तेजस्वी यादव बढ़त लेते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि, एनडीए का भविष्य और महागठबंधन की सफलता पूरी तरह से इस पर निर्भर करेगी कि ये दल अपनी-अपनी रणनीतियों को कैसे अंजाम देते हैं। विधानसभा चुनाव न केवल बिहार के लिए बल्कि देश की राजनीतिक दिशा के लिए भी अहम साबित हो सकता है।
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