12 जुलाई 2025 | देश
बिहार में विवादों के बीच लागू किए गए एसआईआर (Special Intensive Revision) मॉडल को अब राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने की तैयारी चल रही है। चुनाव आयोग की हालिया गतिविधियों से संकेत मिल रहा है कि यह प्रक्रिया अगस्त 2025 से पूरे भारत में आरंभ की जा सकती है।
✅ देशभर में दस्तक देने को तैयार SIR
बिहार में सफलतापूर्वक लागू की गई मतदाता सूची की गहन समीक्षा प्रणाली अब बाकी राज्यों में भी अपनाई जाने वाली है। कई राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) ने पुरानी मतदाता सूचियाँ वेबसाइटों पर प्रकाशित कर दी हैं। इसका उद्देश्य है—मतदाता जानकारी को अधिक सटीक, अपडेटेड, और भरोसेमंद बनाना, ताकि भविष्य के चुनावों में त्रुटियाँ न हों।
चुनाव आयोग का यह प्रयास उसकी उस संवैधानिक जिम्मेदारी का हिस्सा है, जिसके तहत देशभर में मतदाता सूचियों की पवित्रता बनाए रखनी होती है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि आयोग ने सभी राज्यों के सीईओ को गोपनीय दिशा-निर्देश देते हुए SIR के लिए तैयार रहने को कहा है।
🗂️ क्या है SIR?
SIR यानी विशेष गहन संशोधन, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मतदाता सूचियों को पुराने रिकॉर्ड के आधार पर फिर से खंगाला जाता है। इसमें प्रत्येक वोटर की पहचान, पता और पात्रता की विस्तार से जाँच की जाती है। बिहार में यह अभियान 24 जून 2025 से शुरू हुआ था, जहाँ 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया गया।
🌐 राज्यों में प्रकाशित हुई पुरानी वोटर लिस्ट
अनेक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक अपनी पिछली गहन संशोधन सूचियाँ सार्वजनिक कर दी हैं:
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दिल्ली: 2008 की सूची अपलोड
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उत्तराखंड: 2006 की संशोधित सूची सार्वजनिक
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हरियाणा: 2002 की इंटेंसिव रिवीजन सूची जारी
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बिहार: 2003 की सूची आधार बनी
इन सूचियों को प्रकाशित करने का मकसद है कि नागरिक अपने नाम, पते और विवरणों को देखकर सुधार के लिए आवेदन कर सकें।
🧾 SIR कैसे काम करेगा?
SIR की प्रक्रिया बिहार के मौजूदा मॉडल की तर्ज पर संचालित होगी:
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BLO नियुक्ति: प्रत्येक बूथ पर BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर जानकारी जुटाएँगे।
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फॉर्म वितरण: छपे हुए सत्यापन फॉर्म में मतदाताओं को तीन श्रेणियों में बाँटा जाएगा — 1987 से पहले जन्मे, 1987–2004 के बीच जन्मे, और 2004 के बाद के।
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दस्तावेज माँग: वोटर को पहचान साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज देने होंगे।
❗ क्यों जरूरी है SIR?
चुनाव आयोग का मानना है कि मतदाता सूचियों की सटीकता लोकतंत्र की बुनियाद है। समय के साथ इसमें कई तरह की गड़बड़ियाँ हो सकती हैं, जैसे:
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मृत लोगों के नाम अब भी सूची में रह जाना,
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एक ही व्यक्ति के कई जगह नाम,
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गलत पता या जन्मतिथि,
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नकली नामों का दर्ज होना।
🗨️ SIR को लेकर सवाल और विवाद
जहाँ एक ओर आयोग इस प्रक्रिया को पारदर्शी बता रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने इस पर कई सवाल उठाए हैं। बिहार में SIR को लेकर विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और राजद ने आशंका जताई है कि इससे गरीब और दस्तावेजों से वंचित समुदायों के नाम गलती से हटाए जा सकते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस प्रक्रिया को संविधान विरोधी बताते हुए कहा कि यह "कमजोर वर्गों को मतदान अधिकार से वंचित करने की साजिश" है।
बिहार में लागू प्रक्रिया के तहत मतदाताओं से जन्म प्रमाण पत्र, माता-पिता की पहचान संबंधी दस्तावेज आदि माँगे गए, जो पहले कभी अनिवार्य नहीं थे। इस कारण विवाद गहराया।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी मान्य माना जाए। अदालत ने SIR को रद्द नहीं किया लेकिन यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी वैध मतदाता का नाम अनजाने में न कटे।
🔍 आगे क्या?
यह अभी तय नहीं है कि देशभर में लागू होने वाले SIR में दस्तावेजों की वही सूची लागू होगी जो बिहार में थी या इसमें बदलाव किया जाएगा। लेकिन इतना साफ है कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को राष्ट्रीय चुनाव सुधार अभियान के रूप में देख रहा है।
🔚 निष्कर्ष
बिहार में जो शुरू हुआ, वह अब राष्ट्रीय दिशा पकड़ रहा है। मतदाता सूचियों को पुख्ता करने की इस पहल से चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता तो बढ़ेगी, लेकिन साथ ही यह आवश्यक है कि प्रक्रिया में किसी नागरिक के साथ अन्याय न हो। आगामी अगस्त से देश के कोने-कोने में शुरू होने वाली यह कवायद भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा कदम हो सकती है — बशर्ते निष्पक्षता बनी रहे।
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