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सरकारी स्कूलों की आरटीई कानून के प्रति उदासीनता पर उठे सवाल, रामप्रकाश तिवारी ने की कार्रवाई की मांग

रांची। झारखंड गैर-सरकारी स्कूल संचालक संघ के केंद्रीय अध्यक्ष श्री रामप्रकाश तिवारी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए राज्य सरकार से कड़ी मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन, शिक्षा मंत्री श्री रामदास सोरेन और शिक्षा सचिव श्री उमाशंकर सिंह से अपील करते हुए कहा कि राज्य के वे सभी सरकारी एवं अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त विद्यालय, जो ‘झारखंड निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार प्रथम संशोधन नियमावली 2019’ के प्रावधानों का पालन करने में विफल हैं—उन्हें तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए।

श्री तिवारी ने स्पष्ट किया कि झारखंड के अधिकांश सरकारी स्कूल और अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त विद्यालय निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009-10 के अंतर्गत निर्धारित सभी मानकों और शर्तों को पूर्ण करने में असफल रहे हैं। यह न केवल शिक्षा के अधिकार जैसे संवैधानिक कानून का उल्लंघन है, बल्कि बाल शिक्षा की गुणवत्ता पर भी गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

उन्होंने कहा कि जब सरकारी तंत्र के ही संस्थान इस कानून का सही ढंग से अनुपालन नहीं कर पा रहे हैं, तब प्राइवेट गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों पर इसी कानून की धारा के तहत सख्ती बरतना और उन्हें जबरन मान्यता लेने के लिए बाध्य करना न केवल दोहरी नीति को दर्शाता है, बल्कि यह अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण भी है।

उन्होंने आगे कहा कि स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के निर्देश पर राज्य के विभिन्न जिला शिक्षा अधीक्षक निजी स्कूलों पर अत्यधिक दबाव बना रहे हैं, जिससे निजी शिक्षा संस्थान अनावश्यक प्रशासनिक और कानूनी जटिलताओं में उलझ रहे हैं।

श्री तिवारी ने दोहराया कि अगर सरकार वास्तव में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार चाहती है, तो पहले उसे स्वयं के संस्थानों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी, अन्यथा यह शिक्षा व्यवस्था में पक्षपात को बढ़ावा देने जैसा होगा।

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