जनसंघर्ष, संगठन और विचारधारा का नया केंद्र बना ‘राजीव गांधी भवन’
गुरु पूर्णिमा के पुण्य अवसर पर, गिरिडीह में जिस ऐतिहासिक दृश्य का साक्षी बना वह किसी एक भवन के उद्घाटन की नहीं, बल्कि एक युग के पुनरारंभ की घटना थी। भारी बारिश के बावजूद, जिस संकल्प और साहस के साथ हमारे प्रदेश अध्यक्ष श्री केशव महतो कमलेश और AICC प्रभारी श्री के. राजू जी ने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गिरिडीह जिला कांग्रेस कार्यालय ‘राजीव गांधी भवन’ का उद्घाटन किया—वह कांग्रेस की जीवंतता और जनसंघर्ष की परंपरा को पुनर्स्थापित करने का आह्वान था।
यह भवन ईंट-पत्थर से नहीं, त्याग, विचार और चंदे की संस्कृति से बना है। यह वह स्थान है, जहाँ कार्यकर्ता दफ्तर नहीं, आंदोलन और संगठन का भविष्य देखेंगे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के वक्तव्यों में झलकता है संघर्ष का दर्शन:
के. राजू जी ने स्पष्ट कहा:
“यह भवन केवल कांग्रेस का दफ्तर नहीं, जनता की आवाज़ और उनके अधिकारों की रक्षा का केंद्र होगा।”
यह संकेत है कि संगठन अब लड़ने नहीं, लड़ाई जीतने की तैयारी में है।
केशव महतो कमलेश जी का आत्मविश्वास प्रेरक है:
“गिरिडीह में कांग्रेस पुनः खड़ी हो रही है।”
यह कथन केवल गिरिडीह नहीं, पूरे झारखंड में संगठन के नव-निर्माण की उद्घोषणा है।
डॉ. इरफान अंसारी जी ने बहुत गहरी बात कही:
“भाजपा आलीशान भवनों पर गर्व करती है, कांग्रेस कार्यकर्ता संघर्ष से भवन गढ़ते हैं।”
यह हमें विचारधारा बनाम सत्ता की चमक के बीच फर्क की याद दिलाता है।
राजेश ठाकुर जी ने इसे संगठनात्मक चेतना का प्रतीक कहा:
यह भवन एक आह्वान है कार्यकर्ता को विचार से जोड़ने का, पद से नहीं।
सुबोध कांत सहाय जी का कथन आत्मा को छूता है:
“लोकतंत्र बचाने की ताकत सिर्फ कांग्रेस में है।”
उन्होंने यह नहीं कहा कांग्रेस सत्ता में आएगी, उन्होंने कहा संविधान बचेगा।
प्रदीप यादव जी ने जब कहा:
“यह भवन आदिवासी, दलित, पिछड़ों की आवाज़ बनेगा।”
तो यह केवल घोषणा नहीं, झारखंड की आत्मा से जुड़ने का रास्ता था।
श्वेता सिंह जी की बात:
“यह भवन महिला शक्ति और भागीदारी का प्रतीक है।”
हमें स्मरण कराती है कि नारी नेतृत्व कांग्रेस की परंपरा में जन्मजात है.
एक अनुभवी कांग्रेस कार्यकर्ता के नाते मैंने संगठन के वो दिन भी देखे हैं जब गांव के चौपाल से लेकर संसद तक, कांग्रेस की आवाज़ ही जनतंत्र की धड़कन थी। मैंने वो दृश्य भी देखे जब हमारे कार्यकर्ता खून-पसीने से संगठन की दीवारें गढ़ते थे और आज गिरिडीह में वही दृश्य दोहराया गया।
यह भवन कोई 'इनॉग्रेशन' नहीं, एक पुनर्जागरण है। यह उन हजारों कार्यकर्ताओं की तपस्या का परिणाम है, जिन्होंने कांग्रेस को नारे से आंदोलन, और आंदोलन से जन-आस्था बनाया।
गिरिडीह से जो लौ जली है, वह पूरे झारखंड को रोशन करेगी।
अब समय है –
जो छूट गए उन्हें जोड़ने का,
जो टूट गए उन्हें समेटने का,
जो रुके थे उन्हें फिर से संग्राम में लाने का।
जय कांग्रेस।
जय झारखंड।
जय संविधान।
लेखक – हृदयानंद मिश्र,
एडवोकेट एवं सदस्य, हिन्दू धार्मिक न्यास बोर्ड, झारखंड सरकार
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